Type Here to Get Search Results !

विद्यासागर गंगा, मन निर्मल करती है भजन लिरिक्स | VidyaSagar Ganga, Man Nirmal Karti Hai Bhajan Lyrics

VidyaSagar Ganga, Man Nirmal Karti Hai Bhajan Lyrics


विद्यासागर गंगा, मन निर्मल करती है भजन लिरिक्स


विद्यासागर गंगा, मन निर्मल करती है,
ज्ञानाद्रि से निकली है, शिवसागर मिलती है।
इक मूलाचार का कूल, इक समयसार तट है-2
दोनों होते अनुकूल संयम का पनघट है।
स्याद्वाद वाह जिसका, दर्शक मन हरती है।
विद्यासागर...............
मुनिगण राज हंसा, गुण मणि मोती चुगते-2
जिनवर की संस्तुतियां पक्षी कलरव लगते
शिवयात्री क्षालन को, अविरल ही बहती है।
विद्यासागर....................
नहीं राग द्वेष शैवाल, नहीं फेन विकारो का-2
मिथ्यात्व का मकर नहीं, नहीं मल अविचारों का
ऐसी विद्या गंगा, मृदु पावन करती है।
विद्यासागर.........................
जिसमें परिषह लहरें, और क्षमा की भंवरे हैं-2
करुणा के फूलों पर भक्तों के भौरें हैं,
तप के पुल मे से वह, मुक्ति में ढलती है,
विद्यासागर................... 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
close button