विद्यासागर गंगा, मन निर्मल करती है भजन लिरिक्स
विद्यासागर गंगा, मन निर्मल करती है,
ज्ञानाद्रि से निकली है, शिवसागर मिलती है।
इक मूलाचार का कूल, इक समयसार तट है-2
दोनों होते अनुकूल संयम का पनघट है।
स्याद्वाद वाह जिसका, दर्शक मन हरती है।
विद्यासागर...............
मुनिगण राज हंसा, गुण मणि मोती चुगते-2
जिनवर की संस्तुतियां पक्षी कलरव लगते
शिवयात्री क्षालन को, अविरल ही बहती है।
विद्यासागर....................
नहीं राग द्वेष शैवाल, नहीं फेन विकारो का-2
मिथ्यात्व का मकर नहीं, नहीं मल अविचारों का
ऐसी विद्या गंगा, मृदु पावन करती है।
विद्यासागर.........................
जिसमें परिषह लहरें, और क्षमा की भंवरे हैं-2
करुणा के फूलों पर भक्तों के भौरें हैं,
तप के पुल मे से वह, मुक्ति में ढलती है,
विद्यासागर...................